प्रभु मेरे मन को बना दो अमृतंगमय,
तेरे नाम की मैं जपूं रोज माला ।
अब तो मनो कामना है यह मेरी,
जिधर देखूं नज़र आए तेरे ज्योतिर्गमय चहरा॥
कहीं और क्यूँ जाऊं ढूँढने तुझ को ,
प्रभु मन के भीतर ही मैं तुझ को पाऊं ।
यह मन का अमृतंगमय हो सब से निराला,
जिधर देखूं नज़र आए तेरे ज्योतिर्गमय चहरा॥
असत्य से सत्य की ओर मुझे ले चलो,
अंधकार से ज्योति की ओर मुझे ले चलो,
मृत्यु से अमृत की ओर मुझे ले चलो प्रभु।’’
भक्ति पे है अपनी विशवास मुझ को,
बनाओ तुम चरणों का दास मुझ को ।
मैं तुझ से जुदा अब नहीं रहने वाली ,
जिधर देखूं नज़र आए तेरे ज्योतिर्गमय चहरा॥
तू दर्पण सा उजला मेरे मन को करदे,
तू अपना उजाला मेरे मन में भरदे ।
हैं चारो दिशाओं में तेरा उजाला,
जिधर देखूं नज़र आए तेरे ज्योतिर्गमय चहरा॥
~ ~ जय श्री राधे कृष्णा ~ ~
~ ~ सदा बहार ~ ~
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