दो अश्क से बनी समंदर , समंदर से बनी सदा बहार ।
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Saturday, May 19, 2012
मेरे प्रिय कान्हा
श्यामा लिखूं , कान्हा लिखूं ,
या गिरधर गोपाला लिखूं ?
हैरान हूँ के आप को इस ख़त में क्या लिखूं ,
ये मेरा पहला प्रेमपत्र पड़कर के आप नाराज़ न होना ,
के आप मेरी ज़िन्दगी है , कान्हा आप मेरे बंदगी है ,
आपको में चाँद कहती थी ,
उस चांदनी के रौशनी से में ,
अपने
आप को सवारती थी ,
मगर उसमे भी दाग है ,
आपको सूरज में कहती थी ,
मगर उसमे भी आग है ,
आपको इतना ही कहती हूँ की ,
मुझको आपसे प्यार है ,
आपके नामों से प्यारा इस जग में दूसरा कोई नहीं है ,
ये मेरा प्रेम पत्र पढ़कर के आप नाराज़ न होना ,
के आप मेरी ज़िन्दगी है , कान्हा आप मेरे बंदगी है ,
हर पल आपकी याद मुझे सताती है ,
आप दिल के पास है इतने ,
फिर भी न जाने क्यूँ ,
ये दूरियां सी लगती है , कान्हा जल्दी से आ जाओ ,
तुम्हारी ही इंतज़ार में हूँ , अगर मर जाऊं तो ,
मेरी रूह भटकेगी ,
आपके इंतज़ार में ,
ये मेरा पहला प्रेम पत्र पढ़कर के आप नाराज़ न होना ,
के आप मेरी ज़िन्दगी है , कान्हा आप मेरी बंदगी है ।
आपकी प्रिय राधा रानी
~ ~ जय श्री राधे कृष्ण ~ ~
~ ~ सदा बहार ~ ~
1 comment:
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
May 19, 2012 at 7:36 PM
बहुत सुन्दर रचना।
जय श्री कृष्ण!
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बहुत सुन्दर रचना।
ReplyDeleteजय श्री कृष्ण!