दो अश्क से बनी समंदर , समंदर से बनी सदा बहार ।
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Saturday, October 20, 2012

कान्हा तेरे प्यार


छूया है तेरे प्यार ने मुझे इस कदर,
जितना कल्पना किया था उससे कही गुना ज्यादा,
कि में सँभालते सँभालते थक जाती हूँ,
गली-गली, शहर-शहर,
तेरी रानी बनी फिरती हूँ,
सिर्फ तलाश करती फिरती हूँ,
तेरे चेहरे की एक झलक पाने के लिए,
तालाब के किनारे पर थिरकते रहे जाती हूँ,
हर मौसम में हर मिजाज़ में,
तेरे ही बांसुरी के आवाज़ की कल्पना करते रहती हूँ,
कान्हा में तेरी रानी बनी फिरती हूँ,
न पूछ मेरी दीवानगी का सबब
तू वो बंदगी है जिसपर में फ़िदा होकर मरती हूँ,
सोते-जागते, उठते-बैठते,
तेरे ही नाम की माला जपती हूँ,
तू पास हो या न हो पर में तेरी परछाई को निहारती हूँ,
तेरी याद में रोज़ में फूलों से संवरती हूँ,
हँसती -खेलती, नाचती-गाती,
में तेरी सपनों की रानी हूँ कान्हा। 

जय श्री राधे कृष्णा 

सदा बहार