दो अश्क से बनी समंदर , समंदर से बनी सदा बहार ।
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Wednesday, November 14, 2012

गोवर्धन पूजा


"गोवर्धन पूजा की हार्दिक शुभकामना"दीपावली की अगली सुबह गोवर्धन पूजा की जाती है। लोग इसे अन्नकूट केनाम से भी जानते हैं। इस त्यौहार का भारतीय लोकजीवन में काफी महत्वहैइस पर्व में प्रकृति के साथ मानव का सीधा सम्बन्धदिखाईदेताहैइसपर्वकीअपनी मान्यता और लोककथा है। गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायोंकीपूजाकी जाती है । शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उसी प्रकारपवित्रहोतीजैसेनदियों में गंगा। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है।देवीलक्ष्मीजिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध। 

सेस्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। इनका बछड़ा खेतों में अनाज उगाता है। इस तरह गौ सम्पूर्ण मानव जाती के लिए पूजनीय और आदरणीय है। गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है और इसके प्रतीक के रूप में गाय की ।
जब कृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलधार वर्षा से बचने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उँगली पर उठाकर रखा और गोप-गोपिकाएँ उसकी छाया में सुखपूर्वक रहे। सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रखा और हर वर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाने की आज्ञा दी। तभी से यह उत्सव अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा।...!!!

नंदबाबा ने कहा- बेटा! भगवान इंद्र वर्षा करने वाले मेघों के स्वामी है, ये मेघ उन्ही के अपने रूप है, वे समस्त प्राणियों को तृप्त करने वाले एवं जीवनदान करने वाले जल बरसाते है. हम उन्ही मेघपति इंद्र की यज्ञ के द्वारा पूजा किया करते है उनका यज्ञ करने के बाद जो कुछ बचा रहता है उसी अन्न से हम सब मनुष्य अर्थ, धर्म, काम, की सिद्धि के लिए अपना जीवन निर्वाह करते है। 

भगवान ने कहा –

“श्रीकृष्ण की ने कहा ! प्राणी अपने कर्म के अनुसार ही पैदा होता और कर्म से ही मर जाता है उसे उसके कर्मो के अनुसार ही सुख-दुख भय और मंगलके निमित्तो की प्राप्ति होती है”

ये गौए, ब्राह्मण और गिरिराज का यजन करना चाहिये. इंद्र यज्ञ के लिए जो सामग्रियाँ इकठ्ठी की गयी है उन्ही से इस यज्ञ का अनुष्ठान होने दे .अनेको प्रकार के पकवान – खीर, हलवा, पुआ, पूरी, बनायें जाएँ, व्रज का सारा दूध एकत्र कर लिया जाये, वेदवादी ब्राहाणों के द्वारा भलीभांति हवन करवाया जाये फिर गिरिराज को भोग लगाया जाये इसके बाद खूब प्रसाद खा-पीकर सुन्दर-सुन्दर वस्त्र पहनकर गोवर्धन की प्रदक्षिणा की जाये, ऐसा यज्ञ गिरिराज और मुझे भी बहुत प्रिय है। 

भगवान की इच्छा थी कि इंद्र का घमंड चूर-चूर कर दे. नंदबाबा आदि गोपो ने उनकी बात बड़ी प्रसन्नता से स्वीकार कर ली . भगवान जिस प्रकार का यज्ञ करने को कहा था वैसे यज्ञ उन्होंने प्रारंभ कर दिया .सबने गिरिराज और ब्राह्मणों को सादर भेटे दी, और गौओ को हरी-हरी घास खिलाई फिर गोपिया भलीभांति श्रृंगार करके और बैलो से जुटी गाडियों पर सवार होकर भगवान कृष्ण की लीलाओ का गान करती हुई गिरिराज की परिक्रमा करने लगी. भगवान श्रीकृष्ण गिरिराज के ऊपर एक दूसरा विशाल शरीर धारण करके प्रकट हो गये और ‘मै गिरिराज हूँ’ इस प्रकार कहते हुए उन्होंने अपना बड़ा-सा मुहँ खोला और छप्पन भोग और सारी सामग्री पात्र सहित आरोगने लगे. आन्यौर-आन्यौर,और खिलाओ,और खिलाओ इस प्रकार भगवान ने अपने उस स्वरुप को दूसरे ब्रजवासियो के साथ स्वयं भी प्रणाम किया और कहने लगे – देखो कैसा आश्चर्य है, गिरिराज ने साक्षात् प्रकट होकर हम पर कृपा की है.और पूजन करके सब व्रज लौट आये। 

जब इंद्र को यह पता चला की मेरी पूजा बंद कर दी गयी है तब वे नंदबाबा और गोपो पर बहुत ही क्रोधित हुए इंद्र को अपने पद का बड़ा घमंड था वे स्वयं को त्रिलोकी का ईश्वर समझते थे उन्होंने क्रोध में तिलमिलाकर प्रलय करने वाले मेघों के संवर्तक नामक मेघों को व्रज पर चढ़ाई करने की आज्ञ दी. और स्वयं पीछे-पीछे ऐरावत हाथी पर चढ कर व्रज का नाश करने चल पड़े। 

इस प्रकार प्रलय के मेघ बड़े वेग से नंदबाबा के व्रज पर चढ़ आये और मूसलाधार पानी बरसाकर सारे ब्रज को पीड़ित करने लगे चारो ओर बिजलियाँ चमकने लगी. बादल आपस में टकराकर कडकने लगे और प्रचण्ड आँधी की प्रेरणा से बड़े-बड़े ओले और दल-के-दल बादल बार-बार आ-आकर खम्भे के समान मोटी-मोटी धाराएँ गिराने लगे. तब व्रजभूमि का कोना-कोना पानी से भर गया और वर्षा की झंझावत झपाटे से जब एक–एक पशु और ग्वालिने भी ठंड के मारे ठिठुरने और व्याकुल हो गयी. तब सब-के-सब भगवान श्रीकृष्ण की शरण में आये, सब बोले - कृष्ण अब तुम ही एकमात्र हमारे रक्षक हो, इंद्र के क्रोध से अब तुम्ही हमारी रक्षा कर सकते हो। 

भगवान ने देखा तो वे समझ गये कि ये सब इंद्र की करतूत है वे मन-ही-मन कहने लगे हमने इंद्र का यज्ञ भंग कर दिया है इसी से व्रज का नाश करने के लिए बिना ऋतु के ही यह प्रचंड वायु और ओलो के साथ घनघोर वर्षा कर रहे है मै भी अपनी योगमाया से इसका भालिभाँती जवाव दूँगा . इस प्रकार कहकर भगवान ने खेल-खेल में एक ही हाथ से गिरिराज गोवर्धन को उखाड़ लिया और जैसे छोटा बच्चा बरसाती छत्ते के पुष्प को उखाडकर हाथ में रख लेते है वैसे ही उन्होंने उस पर्वत को धारण कर लिया। 

इसके बाद भगवान ने कहा – मैया, बाबा और व्रजवासी तुम लोग अपनी गौओ और सब सामग्रियों के साथ इस पर्वत के गड्डे में आकर आराम से बैठ जाओ तब सब-के-सब ग्वालबाल छकडे, गोधन लेकर अंदर घुस गये.थोड़ी देर बाद कृष्ण के सखाओ ने अपनी अपनी लाठिया गोवर्धन पर्वत में लगा दी और कृष्ण से कहने लगे कि ये मत समझना कि केवल तुम ही उठाये हुए हो तब कृष्ण जी ने कहा -
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"कछु माखन को बल बढ्यो कछु गोपन करि सहाय।।
श्री राधा जू कि कृपा से मेने गिरिवर लियो उठाय "  ।।
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भगवान ने सब व्रजवासियो के देखते-देखते भूख प्यास की पीड़ा आराम-विश्राम की आवश्यकता आदि सब कुछ भुलाकर सात दिन तक लगातार उस पर्वत को उठाये रखा वे एक पग भी वहाँ से इधर-उधर नही हुये। 

श्रीकृष्ण की योगमाया का यह प्रभाव देखकर इंद्र के आश्चर्य का ठिकाना न रहा अपना संकल्प पूरा न होने के कारण उनकी सारी हेकड़ी बंद हो गयी. उन्होंने मेघों को अपने-आप वर्षा करने से रोक दिया. जब आकाश में बादल छट गये और सूरज देखने लगे तब सब लोग धीरे-धीरे सब लोग बाहर निकल आये सबके देखते-ही-देखते भगवान ने गिरिराज को पूर्ववत् उसके स्थान पर रख दिया .और व्रज लौट आये . व्रज पहुँचे तो ब्रजवासियों ने देखा कि व्रज की सारी चीजे ज्यो-की-त्यों पहले की तरह है एक बूंद पानी भी कही नहीं है। 

तब ग्वालो ने श्रीकृष्ण से पूंछा –कान्हा सात दिन तक लगातार इतना पानी बरसा सब का सब पानी कहाँ गया .भगवान ने सोचा – यदि मै इन ग्वालवालो से कहूँगा कि मैने शेष जी और सुदर्शन चक्र को व्रज के चारों ओर लगा रखा था ताकि व्रज में पानी न आये.तो ये व्रजवासियो को विश्वास नहीं होगा। 

इसलिए भगवान ने कहा – तुम लोगो ने गिरिराज जी को इतना भोग लगाया, पर किसी ने पानी भी पिलाया इसलिए वे ही सारा पानी पी गये .तब सब ने कहा – लाला गिरिराज जी ने इतना खाया कि हम लोग उन्हें पानी पिलाना ही भूल गये। 

एक दिन भगवान जब एकांत में बैठे थे तब गोलोक से कामधेनु और स्वर्ग से इंद्र अपने अपराध को क्षमा माँगने के लिए आये उन्होंने हाथ जोड़कर १० श्लोको में भगवान की स्तुति की . फिर कामधेनु ने अपने दूध से और इंद्र ने ऐरावत की सूंड के द्वारा लाए हुए आकाश गंगा के जल से देवर्षियो के साथ यदुनाथश्रीकृष्ण का अभिषेक किया और उन्हें ‘गोविन्द’ नाम से संबोधित किया इसके बाद वे स्वर्ग चले गये। 

जय श्री कृष्णा 

सदा बहार 

Friday, November 2, 2012

Karwa Chauth


What Is Karwa Chauth ?

'Karwa Chauth' is a ritual of fasting observed by married Hindu women seeking the longevity, well-being and prosperity of their husbands. It is popular amongst married women in the northern and western parts of India, especially, Haryana, Punjab, Rajasthan, Uttar Pradesh and Gujarat.

What The Term,
Karwa Chauth Means ?

The term 'Chauth' means the 'fourth day' and 'Karwa' is an earthen pot with a spout - a symbol of peace and prosperity - that is necessary for the rituals. Hence the name 'Karwa Chauth'.

Happy Karwa Chauth 

Jai Shri Radhe Krishna !!

Sadah Bahar